दोस्तों वैसे तो रेगिस्तान में कई कंटीली झाड़ियां व वनस्पतियों के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं मगर उन सबकी अपनी एक अलग ही खूबसूरती व विशेषताएँ हैं। प्रकृति ने थार को पानी से वंचित रखा मगर साथ ही साथ कुछ नायब तोहफ़े भी दिये है। थार के फूलों की खूबसूरती पर बहुत कम लिखा गया है। रेत के अथाह समंदर में न जाने कितने नायाब मोती बिखरे पड़ें है। एक थार का प्राणी होने के नाते मेरा फ़र्ज़ बनता है कि मैं आपको अपने थार की उस अमूल्य विरासत व खूबसूरत परम्पराओं से परिचित करवाऊं। आज इसी क्रम में प्रस्तुत है कीकर के फूल।
कीकर की छाँव में कितने खूबसूरत रंग बिखरे पड़े हैं।गहरा पीलापन लिए हुए कीकर के फूल इतने हल्के होते है कि जरा से हवा के झोंके के साथ उड़ने लगते हैं।रेगिस्थान की खूबसूरती कीकर के फूलों में भी हैं। कीकर के इन गोलाकार खूबसूरत फूलों पर बहुत कम कविताएँ लिखी गई है।
किरण मल्होत्रा जी ने कीकर के फूलों पर कविता लिखी है जो इस प्रकार है।
सुर्ख़ फूल गुलाब के
बिंध जाते
देवों की माला में
सफेद मोगरा, मोतिया
सज जाते
सुंदरी के गजरों में
रजनीगंधा, डहेलिया
खिले रहते
गुलदानों में
और
पीले फूल कीकर के
बिखरे रहते
खुले मैदानों में
बंधे हैं
गुलाब, मोगरा, मोतिया
रजनीगंधा और डहेलिया
सभ्यता की जंजीरों में
बिखरे चाहे
उन्मुक्त हैं लेकिन
फूल पीले कीकर के
हवा की दिशाओं
संग संग बह जाते
बरखा में
भीगे भीगे से
वहीं पड़े मुस्कुराते
देवों की माला में
सुंदरी के गजरों में
बड़े गुलदानों में
माना नहीं कभी
सज पाते
फिर भी लेकिन
ज़िन्दगी के गीत
गुनगुनाते
मोल नहीं
कोई उनका
ख्याल नहीं
किसी को उनका
इन सब बातों से पार
माँ की गोद में
मुस्काते
वहीं पड़े अलसाते