मेरा दाग़िस्तान: रसूल हमज़ातोव
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एक अद्भुत किताब है मेरा दाग़िस्तान।जो हमें अपनी मिट्टी,अपने देश व अपनी मातृभाषा से प्रेम करना सिखाती हैं। इस किताब से मेरा पहला परिचय तक़रीबन चार साल पहले रामकिशन अडिग ने करवाया था। रसूल हमज़ातोव दाग़िस्तान के रहने वाले थे। वही दाग़िस्तान जो मानचित्र में लगभग नहीं सा दिखाई देता है।इस छोटे से राज्य में लगभग बीस लाख की जनसंख्या है।यहाँ लगभग 36 बोलियां बोली जाती हैं तथा अवार भाषा बोलने समझने वालों की संख्या लगभग तीन लाख हैं। यह लेखक की मातृभाषा है। यह पुस्तक संभवतः रूसी भाषा में लिखी गई होगी मगर मैंने इसका हिंदी अनुवाद पढ़ा जो कि मदनलाल "मधु" ने किया हैं। किस्सागोई की शैली में लिखी गई इस दिलचस्प किताब में गद्य के साथ -साथ लोकगीतों व कविताओं का मिश्रण भी पढ़ने को मिलता हैं।
◆ बोलना सीखने के लिए आदमी को दो साल की जरूरत होती है , मगर यह सीखने के लिए कि जबान को बस में कैसे रखा जाए, साठ सालों की आवश्यकता होती है।
◆अस्त्र,जिसकी केवल एक बार ही आवश्यकता पड़े,जीवनभर अपने साथ रखना पड़ता है।
◆ कविताएँ, जिन्हें जीवनभर दोहराया जाता है, एक बार ही लिखी जाती हैं।
◆अच्छी सज्जा बुरी किताब को नहीं बचा सकती। उसका सही मूल्यांकन करने के लिए उस पर से पर्दा हटाना ज़रूरी है।
◆कुछ कलाकार भी, जिनमें प्रतिभा, सब्र औऱ आत्मसम्मान की कमी होती है, अपना माल बेचने के लिए पराए कपड़े पहन लेते हैं, बाहरी रूप की चमक-दमक से विचारों की दुर्बलता को छिपाते हैं। मगर यदि पेट में चूहे कूद रहे हों,तो बाँकपन से फ़र की टोपी ओढ़ने में क्या तुक है?
◆जो कविताएँ आसानी से लिखी गई थीं, उन्हें पढ़ना कठिन होता है। जो कविताएँ मुश्किल से लिखी गई थीं,उन्हें पढ़ना आसान होता है।
◆ गीतों के बारे में यह सही है कि दुनिया में सिर्फ तीन गीत हैं- पहला- माँ का गीत,दूसरा-माँ का गीत और तीसरा गीत-बाकी सभी गीत।
विषय के बारे में: यह तो माल-मते से भरा संदूक़ है। शब्द-वह इस संदूक़ की चाबी है। मगर संदूक़ में अपनी दौलत होनी चाहिए,पराई नहीं।
एक विषय से दूसरे विषय पर छलाँग लगनेवाले लेखक अनेक शादियाँ करने के लिए पहाड़ों में विख्यात दालागालोव के समान हैं। उसने जैसे-तैसे अट्ठाईस बार शादी की,मगर आख़िर में बिल्कुल अकेला ही टापता रह गया।
विषय सोई हुई मछली की भाँति पेट ऊपर को किये हुए सतह पर नहीं तैरा करता। वह तो गहराई में,तेज़ और निर्मल पानी में होता है। उसे वहाँ खोजिए,भँवर में से,जल-प्रपात के नीचे से निकालने की सामर्थ्य पैदा कीजिए।
लम्बे और कठोर श्रम से कमाए गए तथा पटरी पर संयोग से मिल जानेवाले धन का क्या एक जैसा ही मूल्य हो सकता है?
◆ कुछ कविताओं को पढ़ते हुए भी यह समझ में नहीं आता कि उनमें कवित्व अधिक है या कोरी शब्द-भरमार। काहिल कवि ही,जो मेहनत करने से घबराते हैं, ऐसी कविताएँ रचते हैं।मगर उछल-कूद करनेवाली नदी शायद ही कभी सागर तक पहुँच पाती है?
अनुवाद के बारे में:- कविताओं के अनुवाद उन बेटों के समान होते हैं, जिन्हें माँ-बाप पढ़ने या काम करने के लिए गाँव से भेजते हैं।बेशक हर हालत में ही बेटे उसी रूप में गाँव नहीं लौटते,जिस रूप में वे घर छोड़कर जाते हैं।
◆ कितने अधिक है ऐसे लोग,जो प्यार या घृणा की भावनाओं से प्रेरित होकर नहीं,बल्कि केवल गन्ध से प्रेरित होकर लेखनी उठाते हैं।
ये तमाम उद्धरण रसूल हमजातोव की पुस्तक मेरा दागिस्तान को पढ़ते हुए मैंने अंडरलाइन किये हैं।
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